"मन के सवाल और दिल की उलझनें – कभी खुद से, कभी तुझसे।"
- Blog Owner
- Dec 7, 2024
- 2 min read
इधर भी देखा
उधर भी देखा
हर तरफ देखा
जिधर भी देखा
सब मायूस थे
चेहरे पे मनहूसियत छाई थी
हर किसी के।
ऐसा लगा मानो सब मन ही मन परेशान हैं
और उनकी अपनी परेशानी की वजह पता नहीं,
कुछ पल के लिए लगा कि गलत जगह आ गया हूँ,
थोड़ा गौर से देखा तो पता चला ऐसा नहीं है।
सही स्थान पर हूँ लेकिन लोग ही गलत जीवन जी रहे हैं।
सब व्यस्त थे अपने फोन में,
बस इंतजार में थे कि समय बीते।
ये जो दो तीन बच्चे थे उनके चेहरे पे मुस्कान दिखी और सब के सब नीरस दिखे, बेजान से बस पड़े हुए थे अपने फोन में।
कुछ पल के लिए लगा था मानो सब कुछ ठहर सा गया था, लेकिन ऐसा नहीं था, सारी दुनिया यथाभाव से चल रही थी, वो तो मैं तेरी याद में भूल गया था सब कुछ।
वैसे सोचा था कि आज के लिए हो गया है, लेकिन जब कलम और कॉपी बंद किया तो लगा अभी तो तेरे बारे में कुछ लिखा ही नहीं था।
एक बात बहुत दिन से मन में कचोट सी रही थी, सोचा तुमसे ही पूछ लूँ बस एक बात का डर है कि तुम समझोगी कि नहीं,
और अगर समझ भी गई तो क्या सच्चे मन से जवाब दोगी।
और ये भी आशंका है कि तुम बुरा तो नहीं मान जाओगी।
बस इन्हीं सभी असमंजस सवालों के घेरे में बहुत दिन से पड़ा था, पड़ा हूँ भी,
शायद इसलिए ये सवाल अभी तक मेरे दिल से निकलकर मेरे लबों तक आए नहीं, और इसी लिए अभी तेरे कानों ने सुना भी नहीं।
ये एक छोटी सी कविता ही है जो मेरे सवालों को असली रूप दे पाती है, अन्यथा मेरे अंदर का ये तूफान यूँ ही अनंत कालों तक मचलता रह जाएगा, क्योंकि तू तो समझेगी नहीं।

कभी-कभी ऐसा लगता है कि क्या सच में तू मेरे लिए ही बनी है ना?,
मुझे कभी-कभी अपने आप पे आशंका होती है, हम लड़के हैं ना जीवन पर्यन्त अपने परिवार के अलावा कहीं और से कभी हमें प्यार मिला ही नहीं है,
जो अभी तेरे प्यार पे ही शंका हो रही है,
ऐसा नहीं है कि मुझे तुझ पर विश्वास नहीं है या तेरे प्यार पे भरोसा नहीं है,
बस यही लड़के हैं ना आदत नहीं है किसी और से प्यार पाने की, लेकिन ये सोचने मात्र से ही पूरे रोम-रोम में अलग सी चिंगारी सी दौड़ जाती है कि मेरे लिए भी कोई है।
सोच रहा हूँ रख देता हूँ कलम अभी बहुत लिख लिया तेरे और मेरे बारे में थोड़ा देख लेता हूँ इन नजारों को भी।
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